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Thursday, June 24, 2010

चलता चला जाऊगा का लोकार्पण




श्री विष्णु प्रभाकर जी के 99वें जन्म दिन के अवसर पर दिल्ली स्थिति हिंदी भवन में श्री विष्णु प्रभाकर जी द्वारा रचित कविता संग्रह चलता चला जाऊगा का लोकार्पण हिंदी मनीषियों के सान्निध्य में सर्वश्री अजित कुमार, डॉ. बलदेव बंशी, डॉ. कृष्ण दत्त पालीवाल,डॉ. हरदयाल,महेश दर्पण,हास्य कवि सुरेश शर्मा, शमशेर अहमद खान,लक्ष्मी शंकर वाजपेयी,डॉ. सुरेश शर्मा के कर कमलों द्वारा सम्पन्न किया गया. इन कविताओं के संकलन के दायित्व का निर्वहन श्री विष्णु जी के सुपुत्र अतुल कुमार जी और प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन ने किया है.इस संकलन की भूमिका में हिंदी कविताओं के महान समालोचक श्री अजित कुमार ने लिखा हैश्री विष्णु प्रभाकर से परिचित साहित्य प्रेमी सहसा विश्वास न कर सकेंगे कि कथा-उपन्यास,यात्रासंस्मरण,जीवनी,आत्मकथा,रूपक,फीचर,नाटक,एकांकी,समीक्षा, पत्राचार आदि गद्य विधाओं के लिए ख्यात विष्णु जी ने कभी कविताएं भी लिखी होंगी.लेकिन यह एक सच है.पुस्तक के रैपर पर अतुल जी लिखते हैं कि प्रस्तुत काव्य संकलन में सन 1968 से 1990 की अवधि में उनकी आंतरिक संवेदनाओं को कविता के रूप में संप्रेषित करती उन अभिव्यक्तियों को संकलित करने का प्रयास किया है,जो वे वर्ष में एक या दो बार समाज व मानव की स्थितियों-परिस्थितियों पर कविता के रूप में दीपावली व नववर्ष के संदेश के रूप में अपने चाहने वालों को भेजते रहते थे….मेरे विचार में उनकी कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्ति तो है ही, लेकिन उनकी आंतरिक पीडा,आंतरिक इच्छा कि, मनुष्य के अंदर का मनुष्य सच्चे रूप में मानव बन सके और अपने इस जीवन को सार्थक कर सके, की अभिव्यक्ति सबसे ज्यादा मुखर है---पाल ले भले ही दंभ वह, जीतने का प्र्थ्वी को, आकाश को दिग/ दिगंत को,पर/ वह मनुष्य है, मनुष्य ही रहेगा. यही उसकी जीत है, यही उसकी हार है और इसी हार की जीत का नाम है मनुष्य.
कविताओं के बारे में टिप्पणी करते हुए वक्त्तओं ने उन्हें एंटी रोमांटिक मूड में लिखी गई मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन मूल्यों व सामाजिक सरोकारों को दर्शाती संवेदनशील रचनाएं बताईं. एक वक्ता ने 1979 में लिखी गई उनकी एक कविता व्यास और मैं का जिक्र करते हुए यह कहाकि विष्णु जी की कविताएं शाश्वत हैं. आज मनुष्य ने अपने मिथ्या अहम के कारण प्रकृति से जो होड़- लेने की जो व्यर्थ कामना पाल रखी है,इससे मनुष्य का कद बौना ही होता जा रहा है.युगों पहले मनुष्य जब प्रकृति के संरक्षण में था तब उसकी शक्ति असीम थी. आज मनुष्य प्रकृति विजय का दंभ तो भरता है किंतु जलवायु परिवर्तन आदि अनेक ऐसी आपदाएं हैं जिसके आगे वह बौना लगता है, जिसका संकेत विष्णु जी ने अपनी इस कविता में यों व्यक्त किया है--युगों पहले
व्यास ने कहा था—
मनुष्य से बडा कोई नहीं है.
आज
मैं कहता हूं
मनुष्य से छोटा कोई नहीं है.
क्योंकि
मैं मनुष्य हूं
व्यास ऋषि थे.
इस कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कवि हर्षवर्धन द्वारा किया गया.