Saturday, May 22, 2010
कालजयी रचनाकार हैं --अमीर खुसरो
विगत दिनों वरिष्ठ साहित्यकार शमशेर अहमद खान द्वारा लिखित भारत भारती के सच्चे सपूत-अमीर खुसरो शीर्षक पुस्तक का लोकार्पण राज्य सभा के माननीय उप सभापति श्री के. रहमान खान के कर- कमलों द्वारा उनके आवास पर संपन्न हुआ.इस अवसर पर देश के प्रतिष्ठित बुद्धजीवी, विधायक, प्रशासक,साहित्यकार,कवि आदि उपस्थित थे.माननीय उपसभापति जी ने लोकार्पण के उपरांत अमीर खुसरो के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए बताया कि इस बात में कोई संदेह नहीं कि खुसरो साहब हिंदी और उर्दू जबानों के न सिर्फ आदि कवि रहे हैं बल्कि साहित्य और संगीत के कई एक विधाओं के जन्मदाता भी रहे हैं. कई एक वाद्ययंत्रों और छंदों का उन्होंने अविष्कार भी किया. भारतीयता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी. आज एक अजीब सी स्थिति यह हो गई है कि आज की युवा पीढ़ी खुसरो साहब को नहीं जानती,हमारा फर्ज बनता है कि हम उनके योगदान को न भूलें और युवाओं को उनके बारे में बताएं.मैं शमशेर साहब को मुबारकबाद दूंगा कि उन्होंने मेहनत से उनके सारे टेक्स्ट को एक जगह एकत्रित कर पुस्तक का आकार दिया है .वे इसी तरह और लिखें और ऐसी ही पुस्तकें प्रकाश में आएं.
उन्होंने आगे कहाकि खुसरो उस युग में पैदा हुए थे जब सुल्तानों का शासन हुआ करता था. उस जमाने में उन्होंने हिंदवी की बुनियाद डाली और यहीं से हिंदी और उर्दू दो जबानों का उद्गम हुआ. आज हमें न सिर्फ इन जबानों पर नाज है बल्कि भूमंडलीकरण के इस दौर में दुनिया की ताकतवर देश भी अपनी मार्केटिंग मे लिए इन जबानों का सहारा ले रहे हैं. अमीर खुसरो साहब की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम ही होगी. उनका सारा अदब बच्चों से लेकर बड़ों तक न सिर्फ नई सोच देता है बल्कि आपसी मेल-मिलाप,भाईचारा, हुब्बुलवतनी,प्रकृति प्रेम और विश्व बंधुत्व की ओर इशारा करता है. उनकी सारी रचनाएं कालजयी हैं जो हर युग में लागू होती हैं.
इस संगोष्ठी का कुशल संचालन वरिष्ठ पत्रकार श्री एस.एस. शर्मा ने किया.उन्होंने संगोष्ठी में पधारे सीलमपुर क्षेत्र के विधायक श्री मतीन अहमद चौधरी, डॉ. अजय कुमार गुप्ता, जनाब किदवई साहब,प्रकाशक अनिल कुमार शर्मा,पुस्तक के कवर डिजाइनर श्री नरेंद्र त्यागी का विशेष आभार व्यक्त किया.
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आमिर खुसरो का नाम सुनते ही काहे को ब्याही बिदेस ; आज रंग है ; अम्मा मेरे बाबुल को भेजो जी, चल खुसरी घर अपने ....... और ना जाने कितने ही ऐसे गीत याद आ जाते हैं. ऐसे लगने लगता ही जैसे आसपास से कहीं ये गीत अचानक ही अपने आप गूंजने लग गए हैं. उनका योगदान आनेवाली कितनी ही पीढीयाँ सदा याद रखेगी. अब मेरे जैसा एक सामान्य व्यक्ति उनके बारे में लिखे तो क्या लिखे. बस उन्हें याद करते हुए उनके गीत सुनने की इच्छा हो रही है.
ReplyDeletenaresh ji,aapne khusro saheb ko yaad kiyaa. aaj ki pidhi ab kahan aise kaljayee hastiyon ko yaad kar sakegi, zamana jo ab badal reha hai. aadhunik shiksha pranaali ne to rahi-sahi kasar nikal di hai. aise kaviyon ko na to ab padhaya jata hai aur na log hi bache hain,jo hain bhi vah gintee ke reh gaye hain. pathshaalaaon se jyaadaa utter bharat men khusro ki paheliyan shrut parampara me bachchon me kahi jatee theem,jinko school jane ka mauka nahi milta tha lekin litracy to bardh gayee lekinaise mahapurush eliminate kar diye gaye.
ReplyDeletenice
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