शमशेर अहमद खान
14 मार्च 2010,सर्किट हाउस में थोड़ी सी प्रतीक्षा के बाद श्री सुदीप राय शर्मा जी ने गाड़ी भेज दी है.कल ही तय हो गया था कि आज हम काला पहाड़ देखने जाएंगे और उस जीवनदायिनी परियोजना की प्रगति का आंकलन करेंगे जो पोर्टब्लेयर के लोगों को आगे चलकर उनकी प्यास को बुझाएगी. एअरपोर्ट के बाद हम सिप्पी घाट आ गए हैं.अंडमान का काफी बडा भू-भाग जो कृषि योग्य था, सुनामी के बाद खारे पानी से लबालब भर गया है. यहां न तो नदी है और न तालाब व झील ही, फिर भी मुख्य भूमि का कोई शख्स इसे देखे तो उसे तालाब या झील का भ्रम हो सकता है. सुनामी ने धरती के स्तर को नीचे कर दिया है.देश के नीति निर्धारकों की इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता की कमी का अंदाजा इस बात से भी चलता है कि देश में उन्नत तकनीक होने के बाद भी इस भू-भाग को खारे पानी से मुक्ति क्यों नहीं दिलवाई गई? हमारे साथ राजा और ईश्वर हैं ,जिनमें काफी उत्साह और जोश है.सुपारी,नारियल व अन्य सदाबहार वृक्षों के जंगलों से गुजरते हुए हम गुप्ता पारा पहुंचते हैं.इस तिराहे पर लोगों की आबादी के साथ छोटी सी मार्केट भी है. रास्ते में हमें गौएं दिखाई दी हैं लकिन भैंस के दर्शन दुर्लभ था. पोर्ट्ब्लेयर से निकलते समय वहां की एकमात्र डेरी संयंत्र देखा था जो इन्हीं गौओं के दुग्ध को एकत्रित कर आपूर्ति की जाती है लेकिन यह आपूर्ति लगभग सत्तर प्रतिशत तक हो पाता है, शेष चेन्नै से मिल्क पाउडर के रूप में मंगाकर नागरिकों को पूरा किया जाता है.हल्के नाश्ते और चाय के बाद हम आगे बढ़्ते हैं. आगे सड़्क खराब है.राजा बताते हैं कि सड़्क पर भारी वाहनों के चलने से सड़क की यह दुर्दशा हुई है.किंतु यह सिलसिला ज्यादा नहीं चलता. सड़क के ठीक होने के साथ-साथ सड़क के दोनों तरफ गांव भी दिखते हैं जो पर्यावरणीय दृष्टि से आदर्श गांव कहे जा सकते हैं.कुछ दूर चलने पर राजकीय वन संरक्षित क्षेत्र आ जाता है और हमारे साथ पानी की पाइप लाइन भी दिखती जाती है.संरक्षित वन के समाप्त होते ही सागर शुरु हो जाता है. सामने काला पहाड़ दिखाई दे रहा है मुख्य आइलैंड से काला पहाड़ आइलैंड की दूरी दो-ढाई किलोमीटर से अधिक नहीं होगी लेकिन यह एक विवाद का विषय बन गया है कि काला पहाड़ द्वीप से मुख्य द्वीप पर पाइप लाइन सागर के नीचे से लाई जाए या ऊपर से. राजा और ईश्वर बताते हैं कि मूल परियोजना में दोनों द्वीपों को जोड़्ने वाली पाइप लाइन सागर के नीचे से होनी है.नौसेना भी समुद्र की सतह से पाइप लाइन को जोड़ने पक्ष में है. यहां लोगों की आम धारणा यह है कि ठेके वाली कंपनी अपने निहित स्वार्थ के लिए ओवर ब्रिज द्वारा पाइप लाइन डालने पर जोर दे रही है ताकि इस प्रोजेक्ट में विलंब हो और वह इस बहाने चांदी काट सके.
मुख्य आइलैंड पर लाखों गैलन क्षमता वाला मुख्य टैंक तैयार हो रहा है. मुख्य मिस्त्री बताते हैं कि इसे पूरा होने में लगभग दो महीने का समय लग सकता है बशर्ते इसी गति से काम होता रहे.
देश की मुख्य भूमि की तुलना में यहां आबादी का घनत्व कुछ कम है जिससे उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर संघर्ष कम है और इससे यहां के निवासियों में ये सरल,सहृदय हैं और झूठ,फरेब व मक्कारी से कोसों दूर दिखाई देते हैं.मुख्य भूमि से दूरी होने पर राष्ट्रप्रेम में गुणात्मकता स्पष्ट देखी जा सकती है.
कुछ पलों के विश्राम के बाद हम वहां से वापस हो लिए.रास्ते में लौटते हुए यह निर्णय हुआ कि पानी के प्रोजेक्ट वाली यह यात्रा तो अधूरी ही रहेगी, इसलिए काला पहाड़ भी चला जाए. अब समस्या दो-ढाई किलोमीटर सागर को पार करने की थी. इसका हल भी निकाल लिया,हमारे साथी राजा और ईश्वर ने.संरक्षित वन होने के कारण यहां और काला पहाड़पर टूरिस्टो का आवा-गमन निषेध है इसलिए यहां के लिए जेट्टी नहीं मिलती. स्थानीय निवासी अपना आवा-गमन छोटी-छोटी नौकाओं से करते हैं. इन्हीं छोटी नौकाओं में से एक का प्रबंध उन्होंने एक स्थानीय दुकानदार से बहुत ही मामूली किराए पर करा दिया .
काला पहाड़ द्वीप की सागर की यात्रा वह भी साधारण नौका से रोमांचक थी.नीला- हरा सागर सम्मोहन पैदा कर देता था.आंखेम अपनी सभी सीमाओम को पार कर मन- मस्तिष्क में संचित करने मेम जी जान से जुटी हुइ थीं और ऐगुलियां थीं कि कभी स्टिल तो कभी वीडियो कैमरे को आन-आफ करती जा रही थीं.शरीर की इंद्रियां अपना काम करने पर तुली हुई थीं लेकिन गनीमत थी कि इतना सब होने पर भी यात्रा बेखबर नहीं बल्कि बाखबर रही.
14 मार्च 2010,सर्किट हाउस में थोड़ी सी प्रतीक्षा के बाद श्री सुदीप राय शर्मा जी ने गाड़ी भेज दी है.कल ही तय हो गया था कि आज हम काला पहाड़ देखने जाएंगे और उस जीवनदायिनी परियोजना की प्रगति का आंकलन करेंगे जो पोर्टब्लेयर के लोगों को आगे चलकर उनकी प्यास को बुझाएगी. एअरपोर्ट के बाद हम सिप्पी घाट आ गए हैं.अंडमान का काफी बडा भू-भाग जो कृषि योग्य था, सुनामी के बाद खारे पानी से लबालब भर गया है. यहां न तो नदी है और न तालाब व झील ही, फिर भी मुख्य भूमि का कोई शख्स इसे देखे तो उसे तालाब या झील का भ्रम हो सकता है. सुनामी ने धरती के स्तर को नीचे कर दिया है.देश के नीति निर्धारकों की इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता की कमी का अंदाजा इस बात से भी चलता है कि देश में उन्नत तकनीक होने के बाद भी इस भू-भाग को खारे पानी से मुक्ति क्यों नहीं दिलवाई गई? हमारे साथ राजा और ईश्वर हैं ,जिनमें काफी उत्साह और जोश है.सुपारी,नारियल व अन्य सदाबहार वृक्षों के जंगलों से गुजरते हुए हम गुप्ता पारा पहुंचते हैं.इस तिराहे पर लोगों की आबादी के साथ छोटी सी मार्केट भी है. रास्ते में हमें गौएं दिखाई दी हैं लकिन भैंस के दर्शन दुर्लभ था. पोर्ट्ब्लेयर से निकलते समय वहां की एकमात्र डेरी संयंत्र देखा था जो इन्हीं गौओं के दुग्ध को एकत्रित कर आपूर्ति की जाती है लेकिन यह आपूर्ति लगभग सत्तर प्रतिशत तक हो पाता है, शेष चेन्नै से मिल्क पाउडर के रूप में मंगाकर नागरिकों को पूरा किया जाता है.हल्के नाश्ते और चाय के बाद हम आगे बढ़्ते हैं. आगे सड़्क खराब है.राजा बताते हैं कि सड़्क पर भारी वाहनों के चलने से सड़क की यह दुर्दशा हुई है.किंतु यह सिलसिला ज्यादा नहीं चलता. सड़क के ठीक होने के साथ-साथ सड़क के दोनों तरफ गांव भी दिखते हैं जो पर्यावरणीय दृष्टि से आदर्श गांव कहे जा सकते हैं.कुछ दूर चलने पर राजकीय वन संरक्षित क्षेत्र आ जाता है और हमारे साथ पानी की पाइप लाइन भी दिखती जाती है.संरक्षित वन के समाप्त होते ही सागर शुरु हो जाता है. सामने काला पहाड़ दिखाई दे रहा है मुख्य आइलैंड से काला पहाड़ आइलैंड की दूरी दो-ढाई किलोमीटर से अधिक नहीं होगी लेकिन यह एक विवाद का विषय बन गया है कि काला पहाड़ द्वीप से मुख्य द्वीप पर पाइप लाइन सागर के नीचे से लाई जाए या ऊपर से. राजा और ईश्वर बताते हैं कि मूल परियोजना में दोनों द्वीपों को जोड़्ने वाली पाइप लाइन सागर के नीचे से होनी है.नौसेना भी समुद्र की सतह से पाइप लाइन को जोड़ने पक्ष में है. यहां लोगों की आम धारणा यह है कि ठेके वाली कंपनी अपने निहित स्वार्थ के लिए ओवर ब्रिज द्वारा पाइप लाइन डालने पर जोर दे रही है ताकि इस प्रोजेक्ट में विलंब हो और वह इस बहाने चांदी काट सके.
मुख्य आइलैंड पर लाखों गैलन क्षमता वाला मुख्य टैंक तैयार हो रहा है. मुख्य मिस्त्री बताते हैं कि इसे पूरा होने में लगभग दो महीने का समय लग सकता है बशर्ते इसी गति से काम होता रहे.
देश की मुख्य भूमि की तुलना में यहां आबादी का घनत्व कुछ कम है जिससे उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर संघर्ष कम है और इससे यहां के निवासियों में ये सरल,सहृदय हैं और झूठ,फरेब व मक्कारी से कोसों दूर दिखाई देते हैं.मुख्य भूमि से दूरी होने पर राष्ट्रप्रेम में गुणात्मकता स्पष्ट देखी जा सकती है.
कुछ पलों के विश्राम के बाद हम वहां से वापस हो लिए.रास्ते में लौटते हुए यह निर्णय हुआ कि पानी के प्रोजेक्ट वाली यह यात्रा तो अधूरी ही रहेगी, इसलिए काला पहाड़ भी चला जाए. अब समस्या दो-ढाई किलोमीटर सागर को पार करने की थी. इसका हल भी निकाल लिया,हमारे साथी राजा और ईश्वर ने.संरक्षित वन होने के कारण यहां और काला पहाड़पर टूरिस्टो का आवा-गमन निषेध है इसलिए यहां के लिए जेट्टी नहीं मिलती. स्थानीय निवासी अपना आवा-गमन छोटी-छोटी नौकाओं से करते हैं. इन्हीं छोटी नौकाओं में से एक का प्रबंध उन्होंने एक स्थानीय दुकानदार से बहुत ही मामूली किराए पर करा दिया .
काला पहाड़ द्वीप की सागर की यात्रा वह भी साधारण नौका से रोमांचक थी.नीला- हरा सागर सम्मोहन पैदा कर देता था.आंखेम अपनी सभी सीमाओम को पार कर मन- मस्तिष्क में संचित करने मेम जी जान से जुटी हुइ थीं और ऐगुलियां थीं कि कभी स्टिल तो कभी वीडियो कैमरे को आन-आफ करती जा रही थीं.शरीर की इंद्रियां अपना काम करने पर तुली हुई थीं लेकिन गनीमत थी कि इतना सब होने पर भी यात्रा बेखबर नहीं बल्कि बाखबर रही.
Aabhaar.
ReplyDeleteआज दिनांक 17 मई 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट पानी और काला पहाड़ शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। कतरन के लिए यह लिंक देखिएगा http://blogonprint.blogspot.com/2010/05/blog-post_17.html
ReplyDeleteअविनाश जी, लिन्क खुलने में समस्या आ रही है.कृपया प्रकाशित पोस्ट भिजवाएं.
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