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Friday, May 7, 2010

डायरी- दिल्ली से कोलकाता

शमशेर अहमद खान
निर्धारित समय पर हम इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंच गए.जब से इंडियन एअर लाइंस और एअर इंडिया का विलीनीकरण हुआ है तब से घरेलू उडान की यह मेरी पहली यात्रा है.जुलाई 2007 में मैंने एरोफ्लोट में दिल्ली से न्यूयार्क की यात्रा की थी और उस अंतर्राष्ट्रीय उडान में जो उस समय सबसे सस्ती और आरामदायक थी,प्रशंसा का पात्र बनी थी.सरकार ने इकोनामी क्लास में जहां सरकारी निधि में बचत के लिए वरिष्ठतम मंत्रियों को इकोनामी क्लास में यात्रा करने के लिए प्रेरित किया है, वहीं सरकारी कर्मचारियों के लिए निचले क्रम के अधिकारियों को भी हवाई यात्रा करने की सीमा में डालकर घरेलू उडान में उसकी इकोनामी को मजबूत करने का उपक्रम किया है. दोनों उपक्रमों के विलीनीकरण के उपरांत घरेलू उडान में निखार आ गया है.इसी उडान क्रमांक आई.सी.264 को ही लें. एअर बस अंतर्राष्ट्रीय स्तर की है, जो सुविधाएं एअरो फ्लोट में नहीं थीं,वह अब हमारी घरेलू उडानों की इन फ्लाईटों में दिखाई दे रहीं हैं. लोगों को विकास अगर न दिखाई दे तो इसके लिए क्या किया जा सकता है.वैसे सच कहा जाए तो असंतुष्टि ही विकास की शृंखला की एक कड़ी है. लगभग दो घंटे की यात्रा कब खत्म हुई, समय का पता ही न चला. वातावरण के जिस लेयर में हवाई जहाज उड़ रहा था, वहां धूल कण का नामो निशान तक नहीं है. बादलों के ऊपर और सूर्यास्त का दृश्य और नारंगी रंग की आभा सम्मोहन खडा कर देती है. मेरे बाजू में बैठे हुए सहयात्री को जो आनन्दानुभूति हो रही है वही मेरे बेटे और मुझे भी हो रही है.इसी फ्लाइट में हमारे साथी सरोज मिल गए हैं जो दिल्ली से कोलकाता वापस लौट रहे हैं, काफी अरसे बाद सरकारी बैठक के सिलसिले में आए हैं और यह महज संयोग है कि उनसे एअर बस में मुलाकात हो रही है.
मुझे पोर्ट ब्लेयर जाना है और फ्लाइट प्रातः 5 बजे पकड़नी है,लिहाजा कहां जाऊं, ऊहापोह की स्थिति है.मेरा उसूल रहा है कि कम से कम संसाधनों का उपयोग करते हुए अधिकतम सेवाएं दी या ली जाएं. लिहाजा मैं व्यक्तिगत रूप से इकोनामी बरतना चाहता हूं. कोलकाता मैं पहली बार आया हूं और मुझे शहर के मिजाज यानी यातायात व्यवस्था की कोई जानकारी नहीं है लिहाजा राय बनती है कि हम एअरपोर्ट पर ही ठहर जाएं. हमें यह कतई संकोच नहीं होना चाहिए कि हम यह मान चुके हैं कि हम सब लगभग बेईमान हैं लेकिन ऐसा नहीं है खासकर केंद्रीय एजेंसियां अभी ईमानदारी के शिखर को छू रही हैं. मैं जिस अधिकारी से डारमेंट्री बुक कराना चाहता हूं. वे दो मिनट रुकने के लिए कहते हैं.उनके हाथ में एक पर्स है जिसमें हजारों रूपए, क्रेडिट कार्ड और मोबाइल भी है. एअरपोर्ट परिसर में के.औ.सु.ब. को चौकसी का दायित्व सौंपा गया है, अनूप ने जिस ईमानदारी का सबूत देते हुए अपने सीनियर को सौपा है, यह गर्व की बात है.वह बताता है कि लोग अक्सर जल्दी में अपना कीमती सामान भूल जाते हैं लेकिन उनका सामान यहां जमा कर दिया जाता है,यही तो हमारा कर्तव्य है साहब.
इकोनामी बरतते हुए मैंने एक बेड बुक करा लिया है जिसके लिए मुझे 225 रुपए देने पड़े हैं, आज रात मुझे बैठ कर गुजारनी पड़ी है जो देश के इकोनामी के नाम है.लेकिन हर इंडीविजुअल खुद फैसला करने का मुस्तहक है कि वह क्या करना पसंद करे. फैसला आप का.

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