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Saturday, May 8, 2010

डायरी-३-पोर्टब्लेयर की गलियों में पानी की तलाश


शमशेर अहमद खान
13मार्च 2010,को मुझे सर्किट हाउस में काफी समय तक रहना पडा क्योंकि कल की चर्चा में यह निश्चित किया गया था कि शहर की पीने की पानी की वास्तविक समस्याओं से कोई भी बाहरी व्यक्ति तभी पूरी तरह वाकिफ हो सकता है जब वह उन संसाधनों और उन स्थलों की पूरी तरह जांच करे और लोगों से रूबरू हो सके. इस काम के लिए वहां के निगम के चेयर मैन साहब ने वाहन उपलब्ध करवाने का आश्वासन भी दिया था और हमारे साथ एक सहायक अभियंता को भी साथ लगा दिया था.अब उन्हीं का इंतजार जो कटने का नाम ही नहीं ले रहा था.समय तेजी से भागा जा रहा था और हालत ऐसी हो रही थी कि घर के रहे थे और न घाट के. साथ में आया पुत्र भी अब बोर होने लगा था हम आए थे पर्यटन के इरादे से और काम कर रहे थे सामाजिक सेवा का. पहले तो वह कुछ हिचकिचा रहा था लेकिन हमारा यह काम उसे भी रास आने लगा था. आखिर वह छात्र बी.ए. अंतिम वर्ष का है और वह भी दिल्ली विश्वविद्यालय जैसी प्रख्यात संस्था का, जिसे आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बुद्धजीवी पैदा करने का श्रेय हासिल है. वह कुछ और सोचता कि मैंने स्वयं आगे बढ़ कर निगम कार्यालय जाने का निर्णय लिया. जैसाकि पहले भी बताया जा चुका है कि पोर्टब्लेयर में आप मुश्किल से दस मिनट में एक सिरे से दूसरे सिरे तक दस मिनट में पहुंच सकते हैं. देश की एकमात्र ऐसी राजधानी है जहां कभी जाम से वास्ता नहीं ही पड़ सकता है. देश के लिए गौरव की बात हो सकती है. खैर जब हम वहां पहुंचे तो पता चला कि जिस सहायक अभियंता को हमारे साथ लगाया गया था ,अचानक रात में उनकी तबियत खराब हो गई. फिर भी वे मार्च का महीना होने के कारण केवल कुछ पलों के लिए ही आए थे और निकलने वाले थे.जाते-जाते उन्होंने एक पार्षद से परिचय भी करा गए जो आगे चलकर एक आइकन साबित हुए.
इन पार्षद महोदय का नाम श्री सुदीप राय शर्मा है जो न केवल पार्षद हैं बल्कि एक सच्चे समाज सेवी हैं. सुनामी से लेकर आज तक अपने खुद के टैंकरों से बस्तियों में पानी देते हैं.उनको आज मछली बाजार में पानी देना था लिहाजा वे इस अवसर पर आने का आमंत्रण भी देते हैं जिसे हम लोग सहर्ष स्वीकार लेते हैं.
हम शहर के अलग-अलग भागों में जाते हैं जहां कार्पोरेशन की टंकियां हैं. इन्हीं टंकियों के साथ एन.बी.सी.सी. की टंकियां भी खड़ी हैं .पुरानी टंकियों में पानी नहीं है.दो दिनों में जब टंकी भरती है तब उसी समय वार्ड में पानी छोड़ देते हैं. सरकारी अदूरदर्शिता की साक्षी एन.बी.सी.सी. की टंकियां हैं जिनपर करोड़ों रुपए व्यय किए गए हैं और पानीका नामोनिशान तक नहीं है. कई वार्डों का हम दौरा करते हैं और हकीकत में यहां तीन महीने पीने के पानी की विकराल समस्या हमें ज़मीनी सतह पर खुद बयां करती नज़र आती है. अभी हमार दौरा समाप्त हुआ ही था कि सुदीप जी का फोन आ गया कि हम मछली बाजार पहुंच जाएं, टैंकर आ गया है. लोग कतार में पानी बड़े ही अनुशासित तरीके से ले रहे हैं. टैंकर पानी देता हुआ आगे बढ़्ता जाता है. निगम के पानी में तो लोग मार्पीट कर लें लेकिन यहां चूं तक नहीं होती. आखिर् जो पानी के मसीहा जो साथ हैं.
इसके बाद हम जंगली चट्टी देखते है जो मछली बाजार के साथ लगा हुआ इलाका है. यहां सुनामी के विध्वंस के चिह्न आज भी देखे जा सकते हैं.इस घाव को भरने में समय को और समय की जरूरत है.
हम आगे बढ़्ते हैं.अंडमान की जीवन रेखा कही जाने वाली जहाजरानी की गोदी साथ में है. यहां के लिए पानी की आपूर्ति की व्यवस्था ालग से कर रखी गई है. इसी चैथम लाइन से लगा हुआ एक द्वीप है जो आरा मशीन के लिए प्रसिद्ध है. ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यहां एशिया का सबसे बडा आरा मशीन से लकड़ी काटने का कारोबार हुआ करता था लेकिन अब सोया पडा है.बात सच है इस द्वीप ने अपने कल से जो अंदमान के पर्यावरण की दुर्दशा की, उसकी भरपाई करने में सदियां लग जाएंगी.

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