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Friday, May 7, 2010

डायरी- पोर्ट ब्लेयर की तरफ कूच

शमशेर अहमद खान

12 मार्च,2010 कोलकाता के दमदम हवाई अड्डे के डार्मेट्री में एकाएक नींद उचट गई. देखा साढे तीन बजने वाले थे.साढ़े पांच बजे फ्लाइट की उडान का समय था, साढ़े चार बजे एअर पोर्ट पर रिपोर्ट कर अनेक औपचारिकताएं पूरी करनी थीं,लिहाजा समय आ गया था कि दैनिक क्रिया से निवृत होकर सामान समेटा जाए. रिटायरिंग रूम से नीचे आकर चाय ली.चाय का आदमी के जीवन से कितना गहरा संबंध हो गया है कि बिना इसके होठों के आलिंगन से दिन का मुहूर्त ही नहीं होता. उनींदे एअर पोर्ट पर शांत वातावरण में चाय की चुस्कियों का मजा ही कुछ और था.सी.आर..पी.एफ. के जिस जवान को मैं चाय आफर करता हूं, वे शालीनता से मना कर देते हैं.बताते हैं इतनी मंहगी चाय की अपेक्षा वे बाहर जाकर चाय पीना पसंद करेंगे.और फिल्हाल उन्हें चाय की तलब भी नहीं है. रात भर जागकर निश्चिंत होकर सोने का अवसर इस नौजवान ने हमें उपलब्ध करवाया है. हालांकि उसने अपनी ड्यूटी निभाई है लेकिन मेरा विवेक था कि मैने इंसानियत का फर्ज मानते हुर चाय का ऑफर दिया था. इसमें लोगों के अपने-अपने ख्यालात हो सकते हैं और हर को अपने ढंग से सोचने और रियक्ट करने का पूरा अधिकार है भी.चाय की चुस्कियों के बीच में ईमानदारी की कमाई की बात चल निकली.कुछ क्षणोम की आनंदानुभूति के बाद हम यथार्थ की दुनिया में आ गए. समय तेजी से भागा जा रहा था और मुझे सामान समेट कर नीचे एअरपोर्ट पर रिपोर्ट करना था. हम यथा समय तैयार होकर नीचे आ गए. हवाई जहाज निर्धारित सम्य पर जहां उडा वहीं वह अपने निर्धारित समय पर पहुंच भी गया. अंडमान द्वीप समूह के पोर्टब्लेयर का इकलौता हवाई अड्डा अहसास करा गया कि यहां की दुनिया जिंदगी के भागम-भाग से काफी दूर है.लेकिन इसकी धड़कन में भारत बसा है.लाउंज में आते ही मेरे नाम की प्लेट लिए एक सज्जन खड़े मिले.कुछ ही मिनटों में हम सर्किट हाउस में थे. सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था हमने दिल्ली से ही करवा रखी थी इसलिए पोर्टब्लेयर में ठहरने की व्यवस्था को लेकर ऊहा-पोह की कोई समस्या नहीं थी. जहां तक गाडी की व्यवस्था की बात थी तो इसका प्रबंध माननीय सांसद श्री विष्णु पद रे के स्थानीय प्रतिनिधि श्री सवण्णा ने किया था जो स्थानीय सागर दैनिक का प्रकाशन करते हैं.
कुछ विराम के बाद हमने श्री सवण्णा से भेंट करने का निर्णय लिया ताकि अगला कार्यक्रम तय किया जा सके. जाहिर है कि अब मेरी पहली प्राथमिकता अंडमान की समस्या को लेकर थी और पर्यटन कार्यसूची में दूसरे नंबर पर आ गया था.
नीले शांत स्फटिक जैसे पारदर्शी समुद्र को देखकर धरती की दूसरी जन्नत का आभास हो सकता है. पोर्टब्लेयर के सागर तटों को देखकर यह आभास नहीं हो सकता कि 2004 में इस शहर ने सुनामी को झेला होगा.लोगों की अपने शहर को अच्छा बनाए रखने की रुचि, केंद्रीय प्रशासन की सहायता और पूरे देश की जनता के हमदर्दाना रवैए ने इसे जो खूबसूरती प्रदान की है वह शब्दों में बांधना थोडा कठिन होगा.कम आबादी वाले साफ-सुथरे शहर में आटो की यात्रा भी काफी आनंदायक होती है. हिंदी भाषी आटो चालक ने कब गोलमार्केट पहुंचा दिया,समय का पता ही नहीं लगा.
सवण्णा जी से वहां की समस्याओं पर गंभीरता से हम परस्पर विचार करते रहे.पहला मुद्दा जो उभरकर आया वह यह था कि हालांकि सरका्र ने इसे पर्यटन के रूप में विकसित किया है और इसकी इकोनामी पर्यटन पर आधारित है लेकिन मूल निवासियों की तीन महीने जल संकट की समस्या काफी गंभीर है जिसपर निजात पाना जरूरी है.पोर्टब्लेयर नगर निगम के अध्यक्ष श्री जय कुमार नायर से मिलने की बात उठती है ताकि इस समस्या की जड़ और निदान तक पहुंचा जा सके.कुछ इंतजार के बाद मुलाकात का समय तय होता है और हम सब निगम के कर्यालय में होते हैं.
पोर्टब्लेयर के चारों तरफ हालांकि अगाध स्फटिक जैसी पारदर्शी जलराशि है लेकिन सागर की यह जलराशि केवल नौकायन जैसे कामों तक ही सीमित है. पोर्टब्लेयर में न तो नदी है और न झील. भूजल थोडा- बहुत है किंतु पीने का सारा पानी रेन हार्वेस्टिंग द्वारा होता है. यद्दपि यहां औसत वर्षा तीन सौ सेंटीमीटर सालाना है लेकिन सागर की भंडारण क्षमता केवल नौ महीने तक ही आपूरित कर पाती है तीन महीने इस द्वीप पर पानी की राशनिंग होती है और दो या तीन दिनों में बीस मिनट ही पीने का पानी मिल पाता है. सरकार ने कुछ योजनाएं यद्दपि बनाई हैं किंतु वे सफेद हाथी ही साबित हो रही हैं .एन.्बी.सी.सी. ने कई एक टंकियां खड़ी कर दी किंतु खाली टंकियां पानी से आपूरित नहीं हो सकीं और सरकार का करोड़ों रूपए फिल्हाल बेकार साबित हो रहा है. उच्च भूकंपीय क्षेत्र में होने के कारण बांध को भी ऊचा करना तर्कसंगत नहीं लगता.लिहाजा एक बहुत ही बुद्धिमतापूर्ण कदम सरकार ने यह उठाया कि वहां पानी की समस्या का निदान पड़ोसी द्वीप काला पहाड़ से पाइप लाइन द्वारा लाकर यहां जोड़ दी जाए.
काला पहाड़ एक निम्नतम आबादी वाला द्वीप है जहां सघन वनों के बीच इतना पानी है कि अपने पड़ोसी द्वीप के लोगों की प्यास को पूरे साल बुझा सकता है.
इन्हीं मुद्दों पर हमारी चर्चा होती रही. इस चर्चा में पार्षद शेर सिंह, सुदीप राय शर्मा और निगम के कर्मचारी और अधिकारी भी शामिल हुए जिनसे अनेक तथ्य प्रकाश में आए.

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